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दर्द

मेरा दर्द भी वही था
और मरहम भी वही था
महफिल में इस बात से
अनजान बचा भी वही था

चाहत.

इस कदर हम यार को मनाने निकले,
उसकी चाहत के हम दिवने निकले,
जब भी उसे दिल का हाल बताना चाहा,
तो उसके होठॊंसे वक्त ना होनेके बहाने निकले ।

ऑंसु

ऑंसुओ के गिरने की आहट नही होती,
दिलके टूटने की आवाज नही होती,
अगर होता खुदा को एहसास दर्द का,
तो ऊसे दर्द देने की आदत नही होती !